Saturday, October 1, 2016

फौजी भैया के साथ ट्रेन में


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(ANY GIRL OR HOUSE WIFE MAIL ME FOR SEX AND HOW IS MY STORY HELIK024અઁટ ર્ધ રૈટ જી મૈલ.કૌમ )
मेरे फौजी भैया मुझे बहुत अच्छे लगते थे, उनका बलशाली व्यक्तित्व तो जान ले लेता है। पर उस रेल यात्रा के बाद तो वो मुझे और भी अच्छे लगने लगे। भाई बहन की कामुक rail sex story पेश है..
मैं निकू हूँ। मैं अपने बारे में शुरु से बताती हूं। मैं अपने घर में अपने भाई बहनों में तीसरे नंबर, 20 साल की हूं। सबसे बड़े विजय भैया हैं जो आर्मी में हैं। उनकी शादी नहीं हुई है। मुझसे छोटा एक भाई है। मैं होस्टल में रह कर पढ़ति हूं। एक दिन मेरे विजय भैया मुझ से मिलने होस्टल आये। मैं उन्हे देख कर बहुत खुश हुई। वो सीधे आर्मी से मेरे पास ही आये थे। और अब घर जा रहे थे। मैने भी उनके साथ घर जाने का मन बना लिया और कोलेज से 8 दिन की छुट्टी लेकर मैं और विजय भैया घर के लिये रवाना हो गये। जिस ट्रेन से हम घर जा रहे थे उस ट्रेन में मेरा रिज़र्वेशन नहीं था। सिर्फ़ विजय भैया का था। इसलिये हम लोगों को एक ही बर्थ मिली। ट्रेन में बहुत भीड़ थी। अभी रात के 11 बजे थे। हम इस ट्रेन से सुबह घर पहुंचने वाले थे। मैं और विजय भैया उस अकेली बर्थ पर बैठ गये। सर्दियों के दिन थे। आधी रात के बद ठंड बहुत हो जाती थी।
विजय भैया ने बेग से कम्बल निकाल कर आधा मुझे उढा दिया और आधा खुद ओढ लिया। मैं मुस्कुराती हुई उनसे सट कर बैठ गयी। सारी सवारियां सोने लगी थीं। ट्रेन अपनी रफ़्तार से भागी जा रही थी। मुझे भी नींद आने लगी थी और विजय भैया को भी। विजय भैया ने मुझे अपनी गोद में सिर रख कर सो जाने के लिये कहा। विजय भैया का इशारा मिलते ही मैं उनकी गोद में सिर टिका और पैरों को फैला लिया। मैं उनकी गोद में आराम के लिये अच्छी तरह ऊपर को हो गई। विजय भैया ने भी पैर समेट कर अच्छी तेरह कम्बल में मुझे और खुद को ढांक लिया और मेरे ऊपर एक हाथ रख कर बैठ गये।
तब तक मैने कभी किसी पुरूष को इतने करीब से टच नहीं किया था। विजय भैया की मोटी मोटी जांघों ने मुझे बहुत आराम पहुंचाया। मेरा एक गाल उनकी दोनो जांघों के बीच रखा हुआ था। और एक हाथ से मैने उनके पैरों को कौलियों में भर रखा था। तभी मेरे सोते हुये दिमाग ने झटका सा खाया। मेरी आंखों से नींद घायब हो गई।
वजह थी विजय भैया के जांघ के बीच का स्थान फूलता जा रहा था। और जब मेरे गाल पर टच करने लगा तो मैं समझ गई कि वो क्या चीज़ है। मेरी जवानी अंगड़ाइयां लेने लगी। मैं समझ गई कि विजय भैया का लंड मेरे बदन का स्पर्श पाकर उठ रहा है। ये ख्याल मेरे मन में आते ही मेरे दिल की गति बढ़ गई। मैने गाल को दबा कर उनके लंड का जायज़ा लिया जो ज़िप वाले स्थान पर तन गया था। विजय भैया भी थोड़े कसमसाये थे। शायद वो भी मेरे बदन से गरम हो गये थे।
तभी तो वो बार बार मुझे अच्छी तरह अपनी टांगों में समेटने की कोशिश कर रहे थे। अब उनकी क्या कहूं मैं खुद भी बहुत गरम होने लगी थी। मैने उनके लंड को अच्छी तरह से महसूस करने की गरज़ से करवट बदली। अब मेरा मुंह विजय भैया के पेट के सामने था। मैने करवट लेने के बहाने ही अपना एक हाथ उनकी गोद में रख दिया और सरकते हुए पैंट के उभरे हुए हिस्से पर आकर रुकी। मैने अपने हाथ को वहां से हटाया नहीं बल्कि दबाव देकर उनके लंड को देखा।
विजय भैया ने भी मेरी कमर में हाथ डालकर मुझे अपने से चिपका लिया। मैने बिना कुछ सोचे उनके लंड को उंगलियों से टटोलना शुरू कर दिया। उस वक्त विजय भैया भी शायद मेरी हरकत को जान गये। तभी तो वो मेरी पीठ को सहलाने लगे थे। हिचकोले लेती ट्रेन जितनी तूफ़ानी रफ़्तार पकड़ रही थी उतना ही मेरे अंदर तूफ़ान उभरता जा रहा था।
विजय भैया की तरफ़ से कोई रिएक्शन न होते देख मेरी हिम्मत बढ़ी और अब मैने उनकी जांघों पर से अपना सिर थोड़ा सा पीछे खींच कर उनकी ज़िप को धीरे धीरे खोल दिया। विजय भैया इस पर भी कुछ कहने कि बजाय मेरी कमर को कस कस कर दबा रहे थे। पैंट के नीचे उन्होने अंडविजययर पहन रखा था। मेरी सारी झिझक न जाने कहां चली गई थी। मैने उनकी ज़िप के खुले हिस्से से हाथ अंदर डाला और अंडविजययर के अंदर हाथ डालकर उनके हैवी लंड को बाहर खींच लयी।
अंधेरे के कारण मैं उसे देख तो न सकी मगर हाथ से पकड़ कर ही ऊपर नीचे कर के उसकी लम्बाई मोटाई को नापा। 8-9 इंच लम्बा 3 इंच मोटा लंड था। बजाय डर के, मेरे दिल के सारे तार झनझना गये। इधर मेरे हाथ में हैवी लंड था उधर मेरी पैंट में कसी बुर बुरी तरह फड़फड़ा उठी। इस वक्त मेरे बदन पर टाइट जींस और टी-शर्ट थी। मेरे इतना करने पर विजय भैया भी अपने हाथों को बे-झिझक होकर हरकत देने लगे थे।
वो मेरी शर्ट को जींस से खींचने के बाद उसे मेरे बदन से हटाना चाह रहे थे। मैं उनके दिल की बात समझते हुये थोड़ा ऊपर उठ गई। अब विजय भैया ने मेरी नंगी पीठ पर हाथ फेरना शुरू किया तो मेरे बदन में करेंट दौड़ने लगा। उधर उन्होने अपने हाथों को मेरे अनछुई चूचियों पर पहुंचाया इधर मैने सिसकी लेकर झटके खाते लंड को गाल के साथ सटाकर ज़ोर से दबा दिया।
fauji bhaiya ke sath train rail sex story
मेरी जवानी मेरे फौजी भैया की
विजय भैया मेरी चूचियों को सहलाते सहलाते धीरे धीरे दबाने भी लगे थे। मैने उनके लंड को गाल से सहलाया विजय भैया ने एक बर बहुत ज़ोर से मेरी चूचियों को दबाया तो मेरे मुंह से कराह निकल गई,,,,,,,,,,,,,
हम दोनो में इस समय भले ही बात चीत नहीं हो रही थी मगर एक दूसरे के दिलों की बातें अच्छी तरह समझ रहे थे। विजय भैया एक हाथ को सरकाकर पीछे की ओर से मेरी पैंट की बेल्ट में अपना हाथ घुसा रहे थे मगर पैंट टाइट होने की वजह से उनकी थोड़ी थोड़ी उंगलियां ही अंदर जा सकीं।
मैने उनके हाथ को सुविधा अनुसार मन चाही जगह पर पहुंचने देने के लिये अपने हाथ नीचे लयी और पैंट की बेल्ट को खोल दिया। उनका हाथ अंदर पहुंचा और मेरे भारी चूतड़ों को दबोचने लगा। उन्होने मेरी गांड को भी उंगली से सहलाया। उनका हाथ जब और नीचे यानि जांघों पर पैंट टाइट होने के कारण न पहुंच सका तो वो हाथ को पीछे से खींच कर सामने की ओर लाये।
इस बार उन्होने ने मेरी पैंट की ज़िप खुद खोली और मेरी बुर पर हाथ फिराया। बुर पर हाथ लगते ही मैं बेचैन हो गई। वो मेरी फूली हुई बुर को मुट्ठी में लेकर भींच रहे थे। मैने बेबसी से अपना सिर थोड़ा सा ऊपर उठा कर विजय भैया का सुपाड़ा चूमा और उसे मुंह में लेने की कोशिश की परंतु उसकी मोटाई के कारण मैने उसे मुंह में लेना उचित न समझा और उसे जीभ निकालकर लॅंड के चारो और चाटने लगी।
मेरी गर्म और खुरदरी जीभ के स्पर्श से विजय भैया बुरी तरह आवेशित हो गये। उन्होने आवेश में भरकर मेरी गीली बुर को टटोलते हुये एक झटके से बुर में उंगली घुसा दी। मैं सिसकी भरकर उनके लंड सहित कमर से लिपट गयी। मेरा दिल कर रहा था कि विजय भैया फ़ौरन अपनी उंगली को निकाल कर मेरी बुर में अपना मोटा और भारी लंड ठूंस दें। मेरी ये इच्छा भी जल्द ही पूरी हो गयी।
विजय भैया मेरी टांगों में हाथ डालकर अपनी तरफ खींचने लगे थे। मैने उनकी इच्छा को समझ कर अपना सिर उनकी जांघों से उतारा और कम्बल के अंदर ही अंदर घूम गयी। अब मेरी टांगें विजय भैया की तरफ थीं और मेरा सिर बर्थ के दूसरे तरफ था। विजय भैया ने अब अपनी टांगों को मेरे बराबर में फैलाया फिर मेरे कूल्हों को उठा कर अपनी टांगों पर चढ़ा लिया और धीरे धीरे कर के पहले मेरी पैंट खींच कर उतार दी और उसके बाद मेरी पैंटी को भी खींच कर उतार दिया अब मैं कम्बल में पूरी तरह नीचे से नंगी थी।
अब शायद मेरी बारी थी मैं ने भी विजय भैया के पैंट और अंडर वियर को बहुत प्यार से उतार दिया। अब विजय भैया ने थोड़ा आगे सरक कर मेरी टांगों को खींच कर अपनी कमर के इर्द गिर्द करके पीछे की ओर लिपटवा दिया। इस समय मैं पूरी की पूरी उनकी टांगो पर बोझ बनी हुयी थी। मेरा सिर उनके पंजों पर रखा हुआ था। मैने ज़रा सा कम्बल हटा कर आसपास की सवारियों पर नज़र डाली सभी नींद में मस्त थे। किसी का भी ध्यान हमारी तरफ़ नहीं था।
मेरी नज़र विजय भैया की तरफ पड़ी उनका चेहरा आवेश के कारण लाल भभूका हो रहा था वो मेरी ओर ही देख रहे थे न जाने क्यों उनकी नज़रों से मुझे बहुत शरम आयी और मैने वापस कम्बल के अंदर अपना मुंह छुपा लिया। विजय भैया ने फिर मेरी बुर को टटोला। मेरी बुर इस समय पूरी तरह चूत-रस से भरी हुई थी फिर भी विजय भैया ने ढेर सारा थूक उस पर लगाया और अपने लंड को मेरी बुर पर रखा उनके गर्म सुपाड़े ने मेरे अंदर आग दहका दी
उन्होने टटोल कर मेरी बुर के मुहाने को देखा और अच्छी तरह सुपाड़ा बुर के मुंह पर रखने के बाद मेरी जांघें पकड़ कर हल्का सा धक्का दिया मगर लंड अंदर नहीं गया बल्कि ऊपर की ओर हो गया। विजय भैया ने इसी तरह एक दो बार और कोशिश किया वो आसपास की सवारियों की वजह से बहुत सावधानी बरत रहे थे। इस तरह जब वो लंड न डाल सके तो खीज कर अपने लंड को मेरी बुर के आस पास मसलने लगे।
मैने अब शरम त्याग कर मुंह खोला और उन्हें सवालिया निगाहों से देखा। वो बड़ी बेबस निगाहों से मुझे देख रहे थे। मैने सिर और आंखों के इशारे से पूछा “कया हुआ?” तब वो थोड़े से नीचे झुक कर धीरे से फुसफुसाये, “आस पास सवारियां मौजूद हैं गुडू इसलिये मैं आराम से काम करना चाहता था मगर इस तरह होगा ही नहीं, थोड़ी ताकत लगानी पड़ेगी।”
“तो लगाओ न ताकत भैया ” मैं उखड़े स्वर में बोली।
“निकू, ताकत तो मैं लगा दूंगा परंतु तुम्हे कष्ट होगा क्या बरदाश्त कर लोगी?”
“आप फ़िक्र न करें कितना ही कष्ट क्यों न हो भैया, मैं एक उफ़ तक न करूंगी। आप लंड डालने में चाहे पूरी शक्ति ही क्यों न झोंक दें।”
“तब ठीक है निकू, मैं अभी अंदर करता हूं” विजय भैया को इतमिनान हो गया।
इस बार उन्होने दूसरी ही तरकीब से काम लिया। उन्होने उसी तरह बैठे हुये मुझे अपनी टांगों पर उठा कर बिठाया और दोनो को अच्छी तरह कम्बल से लपेटने के बाद मुझे अपने पेट से चिपका कर थोड़ा सा ऊपर किया और इस बार बिल्कुल छत की दिशा में लंड को रखकर और मेरी बुर को टटोलकर उसे अपने सुपाड़े पर टिका दिया। मैं उनके लंड पर बैठ गयी। अभी मैने अपना भार नीचे नहीं गिराया था। मैने सुविधा के लिये विजय भैया के कंधों पर अपने हाथ रख लिये।
विजय भैया ने मेरे कूल्हों को कस कर पकड़ा और मुझसे बोले, “अब एक दम से नीचे बैठ जाओ” मैं मुस्कुराई और एक तेज़ झटका अपने बदन को देकर उनके लंड पर चपक से बैठ गयी। उधर विजय भैया ने भी मेरे बदन को नीचे की ओर दबाया। अचानक मुझे लगा जैसे कोई तेज़ धार खंजर मेरी बुर में घुस गया हो। मैं तकलीफ़ से बिलबिला गयी। क्योंकि मेरी और विजय भैया की मिली जुली ताकत के कारण उनका विशाल लंड मेरी बुर के बंड दरवाज़े को तोड़ता हुआ अंदर समा गया और मैं सरकती हुयी विजय भैया की गोद में जाकर रुकी। मेरी चूत विजय भैय्या के लॅंड के जोड़ तक जा कर रुक गयी।
मैने तड़प कर उठना चाहा परंतु विजय भैया की गिरफ़्त से मैं आज़ाद न हो सकी। अगर ट्रेन में बैठी सवारियों का ख्याल न होता तो मैं बुरी तरह चीख पड़ती। मैं मचलते हुये वापस विजय भैया के पैरों पर पड़ी तो बुर में लंड तनने के कारण मुझे और पीड़ा का सामना करना पड़ा।
मैं उनके पैरों पर पड़ी पड़ी बिन पानी मछली की तरह तड़पने लगी। विजय भैया मुझे हाथों से दिलासा देते हुये मेरी चूचियों को सहला रहे थे। करीब 10 मिनट बाद मेरा दर्द कुछ हल्का हुआ तो विजय भैया कूल्हों को हल्के हल्के हिला कर अंदर बाहर करने लगे। फिर दर्द कम होते होते बिल्कुल ही समाप्त हो गया और मैं असीमित सुख के सागर में गोते लगाने लगी।
विजय भैया धीरे से लंड खींच कर अंदर डाल देते थे। उनके लंड के अंदर बाहर करने से मेरी बुर से चपक चपक की अजीब अजीब सी आवाज़ें पैदा हो रही थीं। मैने अपनी कोहनियों को बर्थ पर टेक कर बदन को ऊपर उठा रखा था और खुद थोड़ा सा आगे सरक कर अपनी बुर को वापस उनके लंड पर ढकेल देती थी। इस तरह से मैं ताल के साथ ताल मिला रही थी।
इस तरह से आधे घंटे तक धीरे धीरे से चोदा चादी का खेल चलता रहा और अंत में मैने जो सुख पाया उसे मैं बयान नहीं कर सकती। विजय भैया ने टोवल निकाल कर पहले मेरी बुर को पोंछा जो खून और हम दोनो के रज और वीर्या से सनी हुई थी उसके बाद मैने उनके लंड को पोंछा और फिर बारी बारी से बाथरूम में जाकर फ़्रेश हुये और कपड़े पहने। मेरे पूरे बदन में मीठा मीठा दर्द हो रहा था।
हम दोनो भाई-बहन न होकर प्रेमी-प्रेमिका बन गये। अब जब भी विजय भैया घर आते मुझे बिना चोदे नहीं मानते हैं मुझे भी उनका इंतज़ार रहता है। मगर अभी तक किसी और को मैने अपना बदन नहीं सौंपा है और न कोई इरादा है/ मेरा बदन सिर्फ़ मेरे विजय भैया का है… हाँ मेरे विजय भैय्या..
——–समाप्त——–
तो यारो, कैसी लगी ये rail sex story, कमेंट्स करके बताओ।

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